गांव के मंदिर में बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ स्वामी की प्रतिमा है स्थापित

कोरबा।  ओड़िसा के प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी की तरह ही औद्योगिक नगर कोरबा में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है। 123 सालों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है। इसकी प्रसिद्धि के कारण शहर से लगे हुए गांव दादरखुर्द ने छोटे पुरी के रूप में अपनी पहचान बनाई है।  अब शहर के लोग इसे छोटे पुरी के नाम से जानने लगे हैं। इस साल  123 वें वर्ष रथयात्रा निकाली जानी है। जिसकी तैयारी अंतिम    चरण में है।

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया को रथजुतिया के नाम से कोरबा जिले के विभिन्न गांवों में रथ यात्रा निकाली जाती है। शहर के निकट स्थित ग्राम दादरखुर्द का रथयात्रा उत्सव जिले भर में प्रसिद्ध है। गांव के मंदिर में बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ स्वामी की प्रतिमा स्थापित है। आषाढ़ कृष्ण पक्ष की पहली तिथि से मंदिर का पट महाप्रभु के बीमार होने की वजह से बंद होता है। वर्तमान में मंदिर का कपाट बंद है। ब्रह्ममुहुर्त में रथजुतिया के दिन मंदिर का पट खुलेगा। ग्रामीणों ने पर्व के लिए तैयारियां शुरू कर दी है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं को सुसज्जित कर रथ में बिठाया जाता है। हर साल होने वाले इस आयोजन को लेकर ग्रामीण उत्साहित हैं। रथयात्रा के दिन हर साल यहां हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। गांव में मेले का भी आयोजन किया जाता है। यह आयोजन समस्त ग्राम वासियों के सहयोग से होता है। जनश्रुति के अनुसार भगवान जगन्नाथ स्वामी इस दिन अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने मौसी के घर जाते हैं। गांव के मंदिर से भगवान जगन्नाथ स्वामी को रथ में बिठाकर गांव भर में भ्रमण कराया जाता है। इस आयोजन में रथ खींचने की उत्सुकता के साथ श्रद्धालु पुण्य लाभ लेने गांव पहुंचते हैं।

यह है पौराणिक मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान बीमार होकर अपनी मौसी के घर चले जाते हैं। जब वह लौटते हैं तो यात्रा के माध्यम से उनका भव्य स्वागत होता है। उसी दिन से मंदिरों के द्वार श्रद्धालुओं के लिए फिर से खोले जाते हैं। गांव दादर में रथ खींचने के लिए आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं।

ब्याहता बेटियां भी लौट आती हैं गांव

गांव दादर में लंबे समय से रथ यात्रा का भव्य आयोजन किया जाता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि दादर को अब लोग छोटा पुरी के नाम से भी जानने लगे हैं। इसकी तैयारी महीने भर पहले से ही शुरू हो जाती है। दादर से जिन बेटियों का विवाह राज्य के बाहर भी हुआ है, वह लगभग हफ्ते भर पहले ही दादर लौटकर यात्रा की तैयारियों में जुट जाती हैं। दादर के साथ ही जिले भर से लोग यहां पहुंचते हैं और रथ यात्रा में शामिल होते हैं। ऐसी मान्यता है कि रथयात्रा में शामिल होकर जो भी श्रद्धालु रथ को खींचता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।

 7 को निकलेगी प्रभु की रथ यात्रा

6 जुलाई को रथ सजेगा और 7 जुलाई को रथ यात्रा निकाली जाएगी। जगन्नाथ मंदिर दादरखुर्द के मंदिर समिति के कृष्णा कुमार द्विवेदी ने बताया कि 22 जून को भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र स्वामी का 51-51 मिट्टी के कलश से औषधीय स्नान कराने की परंपरा निभाई गई। महास्नान के बाद वे 14 दिनों के एकांत में चले चले गए हैं। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं और स्वास्थ्य लाभ लेने 14 दिनों के लिए एकांतवास में चले जाते हैं। इसके कारण श्रद्धालुओं को उनके दर्शन नहीं हो पाता है। भगवान जगन्नाथ 6 जुलाई को नेत्र उत्सव के साथ आम श्रद्धालुओं को दर्शन देने दर्शन मंडप में पधारेंगे। 7 जुलाई को भव्य रथयात्रा निकलेगी।

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