लखनपुर मे श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन

कोरबा। रासलीला केवल नृत्य या गीत का प्रसंग नहीं है, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की कथा है। रास शरीर का नहीं, आत्मा का विषय है। जब कोई भक्त प्रभु को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है, तभी महारास घटित होता है। रास, काम लीला नहीं अपितु काम पर विजय की लीला है।

कटघोरा के निकट लखनपुर की पुरानी बस्ती में यादव परिवार के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन कथा व्यास भागवत आचार्य नारायण महाराज ने उक्त बातें कही। उन्होंने गोवर्धन पूजा, छप्पन भोग, महारास लीला, रासलीला में भगवान शंकर का आना व श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह के प्रसंग का सुंदर वर्णन किया। इस अवसर महाराज ने रास पंच अध्याय का वर्णन करते हुए कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। महाराज ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हुआ। भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रास लीला का वर्णन करते हुए बताया कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है। यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है। कथा में कामदेव ने भगवान पर अपने पूर्व सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया, लेकिन वह भगवान को पराजित नहीं कर पाया उसे ही परास्त होना पड़ा। रासलीला में जीव का शंका करना या काम को देखना ही पाप है। गोपी गीत पर बोलते हुए कथा व्यास ने कहा जब-जब जीव में अभिमान आता है भगवान उनसे दूर हो जाते हैं। जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते हैं उसे दर्शन देते हैं। गोपी गीत पर बोलते हुए व्यास ने कहा जब तब जीव में अभिमान आता है भगवान उनसे दूर हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ, लेकिन रुक्मणि को श्रीकृष्ण द्वारा हरण कर विवाह किया गया।  कथा में समझाया गया कि रुक्मणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी है और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती। यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नही तो फिर वह धन चोरी, बीमारी या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है। धन को परमार्थ में लगाना चाहिए और जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या उनकी सेवा करता है तो उन्हें भगवान की कृपा स्वत: ही प्राप्त हो जाती है। श्रीकृष्ण व रुक्मणि के अतिरिक्त अन्य विवाहों का भी वर्णन किया गया।  कथा के दौरान कथा व्यास ने मधुर भजन से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।

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